Madhu Arora

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अनोखी किस्मत

भाग 7
अनोखी किस्मत
अभी तक आपने पढ़ा राधिका परेशान होकर आत्महत्या करने की कोशिश करतीं हैं।

परन्तु नन्दू और उसके दोस्तो ने उसको बचा लिया।
रधुनंदन वैध जी को राधिका को दिखाती है।

नन्दू कहने लगा माँ  "आज से खाना तुम बनाना , महाराजिन 
अच्छा खाना नहीं बनाती और दाल में घी तक नहीं डालती और दूध में पानी मिलाकर देती है"।

 अब तुम आ गई हो ना ,"तो रोज अच्छा अच्छा खाना बनाकर मुझे खिलाना"।
 
  राधिका ने देखा एक बड़ा सा बाडा उसमे गाय भैंस कुछ मुर्गे मुर्गियां  और चूजे घूम रहे हैं 
  एक नीम का पेड़ , बस कमी थी तो कुछ फुलवारी की, ऐसे ही घर की कल्पना राधिका ने की थी,  राधिका को नन्दू बातें करते हुए लिए जा रहा था।
  
   राधिका जैसे घर के दरवाजे के पास पहुंची, बर्तन धोने वाली   रजिया काकी बाहर निकली, और राधिका को गौर से देख कर बोली छोटे प्रधान जी किसे ले आए ।," रजिया काकी ये मेरी मां है, सुंदर है ना मेरी मां।"
   
   रजिया का कोई उत्तर ना पाकर नंदू बोला काकी सुंदर है ना मेरी मां !
   
   उसे कोई खोया हुआ खजाना मिल गया जल्दी से जल्दी अपने घर की तिजोरी में करना चाहता हूं अनमोल खजाना।
   रजिया बोली," हां नंदू बहुत सुंदर है तुम्हारी माँ "
   
उसे फिर क्या सोच रही हो काकी?

प्रधान रघुनंदन सिंह जी ने देखा कि बाडे के बाहर सारे मुर्गे मुर्गी टहल रहे हैं उन्होंने सारे मुर्गी मुर्गियों को पकड़कर उनके  बाड़े में पहुंचा दिया फिर शेरू से भी कहा चलो अपने घर में जाओ।
 कुएं से दो बाल्टी पानी खींचकर गाय के पास रख दिया। फिर जैसे ही गाय की सानी बनाने जा रहे थे तभी दीनू काका आ पहुंचे, उसने प्रधान जी को आवाज दी अरे मालिक यह क्या कर रहे हैं आप माफ कीजिए आज आने में थोड़ी देर हो गई मैं रजिया से बोल कर गया था । अगर मुझे देर हो जाए तो मुर्गी के बच्चों को और गाय भैंस को चारा डाल देना।
पर रजिया सुनती कहांँ है उसको तो घर जाने की जल्दी थी चलिए छोड़िए मालिक मैं करता हूं "दीनू काका देखो देखो।
 यह मेरी मांँ है"।
 
नंदू राधिका को लेकर अंदर चला गया और बोला इस कमरे में मैं और तुम रहेंगे। और बराबर वाला कमरा बाबा का है वहांँ पर अपना काम से काम करते रहते हैं ।
बाबा  हारमोनियम भी बजाते हैं और मैं भी उनके साथ गाना गाता हूं। मैं तुम भी हमारे साथ गाना गाया करोगी ना।
नंदू माँ हां एक बात और है।
   "  मां  साथ में स्नान घर भी है घर के पीछे काफी जगह है जहां मैं खेलता हूं  राधिका  नन्दू के मुंह से इतनी सारी बातें सुनकर बोली ज्यादा मत बोलो। नहीं तो नजर लग जाएगी"।
  
 दीनू काका रघुनंदन से बोले यह कौन है मालिक रघुनंदन ने सारी बातें बता दी।
 
     रघुनंदन जी कहने लगे तो क्या करूंँ, बच्चे की जिद के आगे मेरी नहीं चली ।
     मुझे भी लड़की भली लगी शायद सच बोल रही थी। चलो अब शाम होने लगी है ।
     "देखता हूं रसोई में क्या रखा है बनाने के लिए क्या खाओगे तो काका रसोई में देखता हूं क्या रखा है मैं तो वही खा लूंगा जो भी आप बनाएंगे"  ।
  आपने काम दिया अपने घर में आसरा दिया बहू बेटे ने तो घर से कब का निकाल दिया था आप नहीं होते तो ना जाने मेरा क्या होता दीनू काका बड़े उदास होते हुए बोले।
  
तो रघुनंदन नंदन सिंह कहने लगे अच्छा चलो अब रसोई में जाकर मैं देखता हूं क्या सब्जी है ऐसा कहकर   रघुनंदन सिंह रसोई की ओर चल दिए"।
 
   बोले तेरी मां को कष्ट होगा बेटा मैं ही खाना बना देता हूं तभी राधिका बोली तकलीफ किस बात की"
   
   वैसे भी मुझे खाना बनाना बहुत पसंद है मैं सब कर लूंगी आप जब तक नन्दू के साथ खेलिए ,तभी नन्दू बाहर दीनू काका के पास आकर बोला पता है काका आज का खाना मेरी मां बना रही है अब मैं मां के पास जाता हूं क्या पता मेरे मां को किसी चीज की जरूरत पड़ जाएगी।
   
  तो इतना कहकर  नन्दू अंदर आ गया नन्दू को पहली बार इतना खुश देखक दीनू काका को बहुत अच्छा लगा। थोड़ी देर बद राधिका ने खाना तैयार कर लिया उनके तड़के वाली दाल, बैगन का भरता ,प्याज का सलाद और गरमा गरम रोटियां ढेर सारे गई के साथ।
  
 नन्दू बाबा और दीनू काका से बोलो खाना तैयार है। नन्दू तेरी मां बुला रही है। राधिका ने तीन थाली लगा दी।
 
 रघुनंदन जी  बोले "माफ कीजिए आपको तकलीफ हुई
  बोले तकलीफ किस बात की मुझे रसोई के काम करना अच्छा लगता है और फिर बच्चा भूखा ही सो जाता न तो आपको अच्छा लगता और ना ही मुझे" रघुनंदन जी बोले ठीक कहा आपने
  
   मै  थाली दीनू काका को देकर आता हूं ।और दीनू काका को देकर रघुनंदन खुद खाने बैठ गए साथ में मुन्ना भी खाना खाने लगा बाहर से दीनूकाका की आवाज आई खाना बहुत अच्छा बना है बिटिया।
   
रघुनंदन सिंह  की आवाज सुनी तो बोले खाना वाकई में बहुत अच्छा बना है।

 तीनों खाना खा रहे थे ,दीनू काका बोले थोड़ी दाल और मिलेगी  बेटा 
  काका दाल , रोटी भी चाहिए तो दो रोटी और ले आना।
  
तुम्हारे हाथों में अन्नपूर्णा माता का वास है।

 सब खाना खाकर और बिस्तर पर लेटे गए।
 
 पराए घर में कौन सा काम कब  होता है।
 
   इसका उसे पता तो नहीं था इसलिए खुद काम भी शुरू नहीं कर सकती थी ।वह जागकर भी लेटी रही।
   
   जैसे उसने करवट लेनी चाहिए उसने देखा कि नन्दू ने उसके पल्लू को अपने हाथ में बांध रखा था  बच्चे का अपने प्रति प्यार देखकर उसका मन ममता से भर उठा और उसने उसके माथे को चूम लिया।

  फिर नन्दू का माथा सहलाने लगी  नींद में बढबढ़ाते हुए कह रहा था तुम मुझे छोड़ कर कहीं मत जाना मेरे पास रहना छोड़ कर तो नहीं जाओगी राधिका ने नन्दू को प्यार से गले लगा लिया नहीं  जाऊंगी  मैं नहीं जाऊंगी ।
  
   बताइएगा आपको कहानी कैसी लग रही है आपके लाइक और कमेंट मुझे लिखने का हौसला देते हैं।

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1 Comments

Natasha

14-May-2023 07:39 AM

मार्मिक दृश्य

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